बेस्टसेलर बनना है... वो भी घर बैठे! 😄

सेल्फ पब्लिशिंग हाउस चलाते हैं तो रोज़ कोई न कोई लेखक अपनी अनोखी उम्मीदों के साथ आता है — और हर उम्मीद अपने आप में बिलकुल जायज़ होती है। कोई चाहता है कि कवर ऐसा हो जो उसके विचारों की गरिमा को दर्शाए, कोई चाहता है कि किताब में उसकी लेखन यात्रा की झलक म…

किताब तो छपवानी है… प्रोसेस समझ भी आ गया... लेकिन दूरी ने दिल तोड़ दिया!

पिछले सप्ताह की बात है। हमारी वेबसाइट पर एक लेखक महोदय ने फॉर्म भरकर रजिस्ट्रेशन किया। नाम, ईमेल, फोन नंबर... सबकुछ। हमें भी लगा कि कोई गंभीर लेखक हैं, जो सच में अपनी किताब प्रकाशित कराना चाहते हैं। प्रोटोकॉल के अनुसार, हमारी टीम ने उन्हें कॉल किया। ?…

प्रकाशक, मुद्रक और भ्रमित लेखक: पुस्तक प्रकाशन का त्रिकोणीय रोमांच! 🎭

कभी प्रकाशक की तलाश में भटकते लेखक, आज खुद अपनी किताबें छपवाने में सक्षम हैं। लेकिन ‘सेल्फ पब्लिशिंग’ और ‘सिर्फ मुद्रण’ के बीच जो महीन रेखा है, वही अक्सर लेखक के सपनों को भाप बना देती है। आइए, व्यंग्य के हल्के फुल्के चश्मे से देखते हैं इस भ्रम की पूरी…

सपनों की किताब और साइलेंट लेखक

हर बिजनेस की तरह, हम भी अपने प्रकाशन को बढ़ाने के लिए फेसबुक पर विज्ञापन करते हैं। फेसबुक विज्ञापन की बदौलत रोजाना 50-100 लेखक हमसे जुड़ने के लिए फॉर्म भरते हैं। अब आप सोच रहे होंगे — "वाह! खूब कमाई हो रही है! पैसा ही पैसा, लेखक ही लेखक!" 😆…

एक दशक बाद पुनः ब्लॉगिंग की ओर वापसी

इस ब्लॉग पर 14 जुलाई 2012 को अंतिम पोस्ट लिखा था। तब से अब लगभग एक दशक बाद दिसंबर 2024 में पुन: अपने राेजगार या कह सकते हैं कि रोजीरोटी के लिए किए जाने वाले कार्य से फुर्सत निकालकर ब्लॉग के लिए कुछ समय निकालने की बहुत दिली इच्छा है, क्योंकि जीवनयापन औ…

कवि, कलम और कलमकार

वैचारिक वेश्यावृत्ति, बनी देश का काल, कलम वेश्या बन गई, छायाकार दलाल, बुद्धू बक्सा बन गया, बहुत बड़ा होशियार, उसे पूजने में लगे, कलमकार सरदार, सत्ता के गलियारों में, है कोई मायाजाल, कुछ अचरज मत मानिए, गर मिल जाएँ दलाल कलमक…

हसरत-ए-अरमां

चले थे बड़े गुमां के साथ दिल में हसरत-ए-अरमां लिए तलाश-ए-मजिल की निकल पड़े अन्जां राह पर.... निकल आये बहुत दूर कि दिखाई दी वीराने में धुंध रोशनी सी और धुधंली सी राह.... लेकिन जमाने की बेरूखी और गन्दी सोच तो देखिये बिछा दिये काटें राह में जमाने का …

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