बेस्टसेलर बनना है... वो भी घर बैठे! 😄


सेल्फ पब्लिशिंग हाउस चलाते हैं तो रोज़ कोई न कोई लेखक अपनी अनोखी उम्मीदों के साथ आता है — और हर उम्मीद अपने आप में बिलकुल जायज़ होती है।

कोई चाहता है कि कवर ऐसा हो जो उसके विचारों की गरिमा को दर्शाए,

कोई चाहता है कि किताब में उसकी लेखन यात्रा की झलक मिले,

और कोई यह भी पूछता है कि “किताब के पहले पेज पर मेरी एक मुस्कुराती सी तस्वीर लग जाए क्या?”

हम हर भावना को सम्मान देते हैं, क्योंकि किताब सिर्फ छपी हुई स्याही नहीं होती — वो लेखक का सपना होती है।

लेकिन…

कभी-कभी कुछ उम्मीदें ऐसी भी होती हैं जो लेखक नहीं, ‘इंस्टा इन्फ्लुएंसर’ जैसी लगती हैं।

एक दिन एक लेखक महोदय का फोन आया। आवाज़ में ऐसा ठहराव था, जैसे कोई साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने जा रहे हों।

बोले, “मुझे अमेज़न बेस्टसेलर टैग चाहिए।”

मैंने आदरपूर्वक पूछा,

“किताब लिखी है क्या, सर?”

वो बोले,

“हां, हां... शीर्षक तय कर लिया है, अब बाकी सब आप कर दीजिए — कवर, छपाई, मार्केटिंग... और वो बेस्टसेलर वाला टैग भी लगवा दीजिए।”

मैंने कहा,

“भईया, टैग तो कुर्ते में लगता है, किताब में नहीं! और अगर लगे भी, तो मेहनत का होना चाहिए — जैसे दूध में मलाई आती है, वैसे ही पाठकों के प्यार से बेस्टसेलर बनता है।”

वो बोले,

“आप चाहें तो मैं डबल पैकेज ले लूंगा। पर टैग चाहिए।”

अब मैं क्या कहता!

ऐसा लग रहा था जैसे बेस्टसेलर टैग अमेज़न से "Combo Offer" में मिल रहा हो:

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फिर उन्हें समझाया —

“हम किताब छाप सकते हैं, डिज़ाइन कर सकते हैं, ISBN और मार्केटिंग गाइडलाइन दे सकते हैं…

लेकिन बेस्टसेलर टैग बेचने वाली कोई दुकान, कोई शॉर्टकट, कोई जुगाड़ हमारे पास नहीं है।

वो तो आपकी लेखनी, आपके विचार और आपके पाठकों की सराहना से आता है।”

लेकिन लेखक महोदय तो जैसे ठान ही चुके थे —

“देखिए, मैं तो सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल दूंगा — 'बेस्टसेलिंग लेखक की नई किताब जल्द आ रही है!'

अब आप पीछे से ‘बेस्टसेलर’ बना दीजिए... बस थोड़ा एडवांस में 'टैग' भेज दीजिए।”

अब भला बताइए —

अगर किसी को किताब छपवाने से पहले ही “बेस्टसेलर” बनना है,

तो फिर गोस्वामी तुलसीदास, प्रेमचंद, निराला और अन्य महान लेखक नाहक ही रातों की नींद गंवाते रहे।

और अंत में...

लेखन कोई इंस्टेंट नूडल्स नहीं है जो दो मिनट में तैयार हो जाए।

किताबें ताली बजवाने के लिए नहीं, आत्मा जगाने के लिए लिखी जाती हैं।

अगर आप वाकई पाठकों के दिल में जगह बनाना चाहते हैं,

तो पहले उनके सामने ईमानदारी से खुद को रखिए — न कि कोई खरीदा हुआ तमगा।

बेस्टसेलर बनने का सबसे सच्चा रास्ता है — पाठकों का विश्वास।

और वो सिर्फ आपकी लेखनी से आता है, किसी पैकेज से नहीं। ✍️📚

Rajender Singh Bisht

मैं राजेन्द्र सिंह बिष्ट, नैनिताल, उत्तराखंड से हूँ, मूल निवास लोहाघाट, उत्तराखंड है। मुझे बचपन से ही पौराणिक और इतिहास की किताबों से लगाव रहा है। पिताजी के असमय स्वर्गवास हो जाने के कारण मेरा बचपन अन्य बच्चों की तरह नहीं बीत पाया, जिस कारण मेरी पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी और भूख मिटाने के लिए ढाई सौ रूपये की नौकरी से शुरूवात की।

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मैंने अपने जीवन में सीखा है कि आपको अपनी सफलता के लिए आपको खुद ही काम करना होगा। यदि आप बिना कुछ करे सफलता पाना चाहते हैं तो कोई आपको सफल नहीं कर सकता है।

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