हर बिजनेस की तरह, हम भी अपने प्रकाशन को बढ़ाने के लिए फेसबुक पर विज्ञापन करते हैं।
फेसबुक विज्ञापन की बदौलत रोजाना 50-100 लेखक हमसे जुड़ने के लिए फॉर्म भरते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे —
"वाह! खूब कमाई हो रही है! पैसा ही पैसा, लेखक ही लेखक!" 😆💸
लेकिन जनाब...
जहाँ बाग़ हरा-भरा दिखता है, वहाँ खरपतवार भी कम नहीं होती। 🌿🌾
इन संपर्क करने वाले लेखकों में से लगभग 50% "साइलेंट आर्टिस्ट" होते हैं।
रोज विज्ञापन देखकर बड़े जोश से फॉर्म भरते हैं, जैसे किताब अगले हफ्ते ही छपने वाली हो...
लेकिन उसके बाद?
ना कॉल उठाते हैं, ना मैसेज का जवाब...
एकदम डिजिटल सन्यासी बन जाते हैं! 👻📴
अब आते हैं बाकी 50% पर —
इनमें से 48% लेखक वो होते हैं जो दो से तीन पिज़्ज़ा खाकर हजारों रूपये उड़ा देंगे 🍕🍕🍕
लेकिन जब किताब प्रकाशित करने का सपना मात्र तीन पिज्जा के खर्च में पूरा हो सकता है,
तो वही पैकेज उन्हें "लूट" लगने लगता है।
"प्रकाशक तो अमीर बन रहा है!" — ये सोचते हुए तुरंत गायब हो जाते हैं।
अब भाईसाहब, जब आप होटल में रुकते हो, मूवी देखते हो, ब्रांडेड कपड़े पहनते हो —
वहाँ भी तो कोई और अमीर हो रहा होता है!
तो फिर अपने सपनों पर खर्च करने में इतनी तकलीफ़ क्यों? 🤷♂️
और कुछ लेखक तो सीधा मान बैठते हैं:
"मेरी किताब तो आते ही बेस्टसेलर बन जाएगी!"
जबकि हकीकत ये है —
खुद उनके दोस्त, रिश्तेदार भी उनकी किताब के बजाय Netflix देखना ज़्यादा पसंद करते हैं। 😅📺
अब आख़िर में एक ही सवाल —
जब आपको कोई जवाब नहीं देना, कोई दिलचस्पी नहीं दिखानी,
तो फॉर्म भरकर आप किस ध्यान-साधना में लीन हो जाते हैं? 🧘♂️✨
"विज्ञापन हम करते हैं, उम्मीदें हम पालते हैं...
और लेखक... मौन व्रत धारण कर लेते हैं!" 😁🙏