आज मेरे पास एक लेखिका का कॉल आया। उन्होंने बताया कि वे अपनी पहली किताब प्रकाशित कराना चाहती हैं। बातचीत सामान्य रही — मैंने उनसे पांडुलिपि, टाइटल, प्रकाशन प्रक्रिया, डिज़ाइन, ISBN और वितरण तक की पूरी जानकारी साझा की।
लेकिन जैसे ही रॉयल्टी की बात आई, उन्होंने कहा:
“दूसरे प्रकाशक तो 80% रॉयल्टी दे रहे हैं, और आप सिर्फ 10%!”
मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया —
“हम आपको 10% रॉयल्टी MRP (Maximum Retail Price) पर दे रहे हैं। यह पूरी तरह पारदर्शी और वास्तविक गणना है। लेकिन जो 80% की बात कर रहे हैं, उनसे ज़रा पूछिए कि वह रॉयल्टी MRP पर है या प्रॉफिट पर?”
और यहीं से शुरू होती है सपनों और सच्चाई के बीच की असली बातचीत।
रॉयल्टी का भ्रम: 80% रॉयल्टी सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन…
बहुत से नए लेखक 80% रॉयल्टी सुनकर तुरंत उत्साहित हो जाते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि:
- जबकि प्रकाशक 80% या 100% जैसी अमीर बनने का सपना दिखने वाली मनभावन रॉयल्टी “प्रॉफिट” पर देते हैं, न कि MRP पर।
- और प्रॉफिट का कोई स्टैंडर्ड फ़ॉर्मूला नहीं होता।
हर प्रकाशक अपनी सुविधा अनुसार काग़ज़, प्रिंटिंग, डिज़ाइन, स्टोरेज, मार्केटिंग, कमीशन और वितरण जैसे खर्चों को जोड़कर प्रॉफिट निकालता है।
मैंने लेखिका से कहा:
"आप पहले अपने उस प्रकाशक से यह पूछिए कि वह रॉयल्टी MRP पर दे रहा है या प्रॉफिट पर? और अगर प्रॉफिट पर दे रहा है, तो आपको वास्तविकता पता चल जाएगी। तब आपको हमारी 10% MRP रॉयल्टी भी बहुत वाजिब और ईमानदार लगेगी।"
"मैंने उनसे आगे कहा — चलिए मान लेते हैं कि आप अपने प्रयास से 15–20 प्रतियाँ बेच पाएँगे, वो भी अधिकतर जान-पहचान वालों को।
यह मैं हवा में नहीं कह रहा — ये मेरा अब तक सैकड़ों लेखकों के साथ काम करने का सीधा तजुर्बा है, जहाँ मैंने सैकड़ों नये लेखकों को अपनी पहली किताब के साथ जूझते देखा है।
ऐसे में अगर आप किसी दूसरे प्रकाशक का महंगा 'प्रीमियम प्लान' लेकर 10,000 से 25,000 रुपये तक खर्च कर देते हैं, जबकि हमारे प्लान इससे दस गुना सस्ते हैं और नए लेखक के लिए बिल्कुल उचित भी, तो आप ख़ुद सोचिए —
क्या वो निवेश वाजिब है?
क्या 15–20 प्रतियों की बिक्री से वो रकम कभी वापस आ पाएगी?"
पहली किताब और पैसे कमाने की जल्दी – एक मायाजाल
यह एक सामान्य सोच है कि कोई भी नया लेखक चाहता है कि पहली किताब से ही अच्छी खासी कमाई हो। लेकिन सच्चाई ये है कि:
- जब कोई काम पहली बार कर रहा हो, तो उससे तुरंत मुनाफ़ा सोचना ऐसा ही है जैसे मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखना।
- लेखन एक निवेश है, जिसमें मेहनत, समय, और धैर्य लगता है।
- पहले ब्रांड बनना पड़ता है, फिर किताबें अपने आप बिकती हैं।
महंगे प्लान और पछतावा: नये लेखकों की आम कहानी
ज़्यादातर नवोदित लेखक जब 80% रॉयल्टी जैसी बातें सुनते हैं, तो महंगे पब्लिशिंग पैकेज ले लेते हैं। उन्हें लगता है कि "बड़ी रॉयल्टी = बड़ी कमाई", लेकिन जब किताब बाज़ार में आती है तो:
- मुश्किल से 10–15 किताबें ही खुद के प्रयास से बिक पाती हैं।
- फिर लेखक निराश होता है, और कहता है — “काश शुरुआत में सोच-समझकर फैसला किया होता।”
तो एक नए लेखक को क्या करना चाहिए?
- फैक्ट्स चेक करें - MRP vs प्रॉफिट पर मिलने वाली रॉयल्टी को समझें।
- महंगे वादों से बचें - जो बहुत अच्छा सुनाई दे रहा है, वो असल में उतना अच्छा नहीं होता।
- पारदर्शी प्रकाशक चुनें - जो आपको सच बताए, न कि बस प्लान बेचे।
- लॉन्ग टर्म सोचें - पहले लेखक बनिए, फिर ब्रांड बनिए।
- इन्वेस्टमेंट करें - पैसा कमाने से पहले, अपनी लेखनी और पहचान बनाने में समय दीजिए।
निष्कर्ष: किताब छपवाना है या सपने?
अगर आप पहली बार लेखक हैं, तो सबसे पहले अपने पाठकों तक पहुँचना, फीडबैक लेना, और अपने लेखन को बेहतर बनाना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। पैसे कमाने की सोच जरूर रखें, लेकिन वो हकीकत पर आधारित होनी चाहिए, न कि सुनहरे वादों पर।
10% MRP रॉयल्टी भले सुनने में कम लगे, लेकिन जब आप इसकी पारदर्शिता और स्थायित्व को समझेंगे, तो यही सबसे मजबूत आधार बनेगा — एक सफल लेखक बनने की दिशा में।
आप लेखक हैं, और लेखक का सबसे बड़ा बल उसकी समझ, सोच और शब्द होते हैं — ना कि भ्रम और भावनाओं में बहकर लिया गया फैसला।