AuthorsWiki.com: कमाई नहीं, लेखकों को पहचान दिलाने का मिशन

आज एक छोटी-सी बात ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।

मैं बस यूँ ही देख रहा था कि AuthorsWiki के पेजों को कौन-कौन रेफ़र करता है—क्योंकि आमतौर पर मैं इसे देखता नहीं हूँ। तभी नज़र पड़ी कि वेबसाइट Grokipedia ने Geetanjali Shree वाली AuthorsWiki प्रोफ़ाइल को एक संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया है। जिसका लिंक यह है- https://grokipedia.com/page/Geetanjali_Shree

किसी और के लिए यह शायद एक उपलब्धि जैसा होगा, पर मेरे लिए यह “अचीवमेंट” नहीं है।

क्योंकि मैं जानता हूँ कि AuthorsWiki की नींव किस मिट्टी से बनी है—कितना समय, पैसा, लगन और विश्वास के साथ इसे सात साल से ज़िंदा रखा गया है।

2018 में शुरू हुई यह कहानी…

AuthorsWiki का विचार मुझे 2018 में आया था।

उस समय न कोई बड़े सपने थे, न कमाई की इच्छा और आज भी नहीं है।

बस एक साधारण-सी सोच—

“भारतीय लेखकों को एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म दिया जाए जहाँ उनकी पहचान सम्मान और स्थिरता के साथ दर्ज रहे।”

यह एक ऐसा समय था जब लेखक डिजिटल दुनिया में खो जाते थे।

ना उनकी कोई ऑनलाइन प्रोफ़ाइल होती,

ना साक्षात्कार,

ना कोई साहित्यिक दस्तावेज़ीकरण।

मैंने सोचा—

  • अगर मैं स्वयं एक पब्लिकेशन चला सकता हूँ,
  • तो मैं लेखकों का एक “विकिपीडिया” क्यों नहीं बना सकता?
  • बस वही दिन था, और AuthorsWiki.com की यात्रा शुरू हो गई।

सात साल, हर साल हजारों रुपये… पर कमाई? सिर्फ 1000 रुपये!

आज तक, AuthorsWiki.com को चलाने में मुझे हर साल हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं—

डोमेन, होस्टिंग, मेंटेनेंस, टेक सपोर्ट, कंटेंट—सब।

लेकिन यह जानकर कई लोग चौंक जाते हैं कि मैंने AuthorsWiki.com से सात साल में सिर्फ 1000 रुपये कमाए हैं।

वो भी तब, जब शुरुआत में एक कंपनी ने एक लेख प्रकाशित कराने का प्रस्ताव दिया था।

उसके बाद मैंने स्पॉन्सर्ड पोस्ट लेने बंद कर दिए।

क्योंकि मुझे AuthorsWiki.com को किसी बिजनेस मॉडल में नहीं बदलना था।

मेरा उद्देश्य साफ़ है—

  • “लेखकों को एक सशक्त मंच देना, न कि इस प्लेटफॉर्म को कमाई की मशीन बनाना।”
  • वास्तविकता कड़वी है: विदेशी लेखक समझते हैं, भारतीय नहीं
  • मेरे लिए यह सबसे आश्चर्यजनक चीज़ रही है—

90% विदेशी लेखक पूरा सहयोग करते हैं।

  • वे इंटरव्यू देते हैं
  • वे इसे अवसर समझते हैं
  • वे अपने सोशल मीडिया पर गर्व से शेयर करते हैं
  • वे अपने पोर्टफोलियो में AuthorsWiki का लिंक जोड़ते हैं

क्यों?

क्योंकि वे जानते हैं कि डिजिटल प्रोफ़ाइल ही असली पहचान है।

लेकिन इधर भारतीय लेखकों की सोच कुछ अलग होती है—

  • “अगर कोई फ्री दे रहा है, तो इसका मतलब वो कहीं और से खूब कमा रहा होगा।”
  • “फ्री है, तो हम क्यों मेहनत करें? सारा प्रोफिट तो वेबसाइट का मालिक ही ले जाएगा।”
  • और इसी सोच में लेखक खुद का ही नुकसान कर लेते हैं।

मेरा जवाब साफ़ है: मैं समाजसेवा नहीं कर रहा, मेरा काम ही मेरा सहारा है

कई लोग कहते हैं—

“फ्री में करते हो, मतलब समाजसेवा कर रहे हो?”

नहीं।

यह समाजसेवा नहीं है।

मेरे पास मेरा अपना पब्लिकेशन है।

मैं और मेरा स्टाफ उसी से अपनी रोज़ीरोटी चलाते हैं।

मैं हमेशा अपने लेखकों से भी साफ़ कहता हूँ—

“अगर आप किताब प्रकाशित करा रहे हैं तो हम उसी के भरोसे जिंदा हैं। सबकुछ फ्री में देना हमारे या आपके बस के बाहर है।”

और यह सच्चाई है जिसे स्वीकार करने में भारतीय लेखक अक्सर हिचकते हैं।

AuthorsWiki.com मेरा जुनून है, दबाव नहीं

आज जब Grokipedia जैसे प्लेटफॉर्म AuthorsWiki.com को रेफ़र करते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि

मेरी सात साल की मेहनत अनदेखी नहीं जा रही।

लेकिन मैं यह काम इसलिए नहीं करता कि कोई मुझे रेफर करे।

मैं करता हूँ क्योंकि—

  • लेखक deserve करते हैं कि कोई उनकी पहचान को संरक्षित करे।
  • लेखक deserve करते हैं कि उनका काम दुनिया में दर्ज हो।
  • लेखक deserve करते हैं कि उनका एक डिजिटल अस्तित्व हो।

और अगर कोई लेखक इसका उपयोग नहीं करता,

तो नुकसान मेरा नहीं—

उसका है।

मेरा मिशन जारी है

  • AuthorsWiki मेरे लिए केवल एक वेबसाइट नहीं,
  • मेरे जीवन का एक शांत लेकिन मजबूत हिस्सा है।
  • मैं इसे सिर्फ इसलिए नहीं चला रहा कि इससे कमाई हो।

मैं इसे इसलिए चला रहा हूँ क्योंकि—

साहित्य जीवित रहता है जब लेखक जीवित रहते हैं।

और लेखक जीवित रहते हैं जब उनकी पहचान सुरक्षित रहती है।

चाहे कोई इसे समझे या न समझे—

AuthorsWiki.com चलता रहेगा।

क्योंकि यह मुनाफ़े का नहीं,

प्रयास और उद्देश्य का मंच है।

Rajender Singh Bisht

मैं राजेन्द्र सिंह बिष्ट, नैनिताल, उत्तराखंड से हूँ, मूल निवास लोहाघाट, उत्तराखंड है। मुझे बचपन से ही पौराणिक और इतिहास की किताबों से लगाव रहा है। पिताजी के असमय स्वर्गवास हो जाने के कारण मेरा बचपन अन्य बच्चों की तरह नहीं बीत पाया, जिस कारण मेरी पढ़ाई बीच में ही छूट गई थी और भूख मिटाने के लिए ढाई सौ रूपये की नौकरी से शुरूवात की।

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मैंने अपने जीवन में सीखा है कि आपको अपनी सफलता के लिए आपको खुद ही काम करना होगा। यदि आप बिना कुछ करे सफलता पाना चाहते हैं तो कोई आपको सफल नहीं कर सकता है।

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