उत्तर प्रदेश में भी भ्रष्ट अफसरों की कमी नहीं

बिहार में आज आईएएस एसएस वर्मा भ्रष्टाचार की मिसाल बने हुए हैं तो उत्तर प्रदेश में भी भ्रष्ट वर्मा जैसे आईएएस अधिकारियों की कमी नहीं है। यूपी में भी नौकरशाहों के खिलाफ आय से अधिक और कुर्सी के दुरुपयोग के दर्जनों मामले चल रहे हैं, लेकिन अपवाद को छोड़कर किसी भी मामले में कुछ भी नहीं हुआ। किसी राजनीतिक दल या प्रभावशाली व्यक्ति का दामन थामे ये नौकरशाह हमेशा ही बच निकलने के रास्ते तलाश लेते हैं। प्रदेश में जांच की जद में तो बहुत से अधिकारी-कर्मचारी आये लेकिन विभाग के इतिहास में सम्पत्ति जब्त करने का मात्र एक ही मामला ही है। जिसमें लगभग दो दशक पूर्व मण्डी परिषद के निदेशक रहे एक अधिकारी और उनके बेटे की सम्पत्ति जब्त करने की कार्यवाही हुयी थी और यह मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है।

उत्तर प्रदेश में जिन लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं उसमें कई दिग्गज हैं। प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी दीपक सिंघल बरेली में रहे तो सरकारी चीनी मिल के घोटालें में फंसे। कल्याण सिंह के शासनकाल में जांच शुरू हुई। सरकार बदली तो जांच खत्म। बसपा सरकार आई तो जांच दोबारा शुरू हुई लेकिन सिंघल साहब की ऊंची पहुंच के चलते जांच फिर ठंडे बस्ते में चली गई। ऐसे आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में विवादित रहे आईएएस अधिकारी ललित वर्मा, खीरी में पाठ्य पुस्तक घोटाले में फंसे बीके वार्ष्णेय, निर्यात निगम में रहते विदेश यात्रा पर लाखों रुपए लुटाने के आरोप में आईएएस तुलसी गौड़ तथा ताज कारीडोर में आरके शर्मा के कारनामे सीबीआई और विजिलेंस की फाइलों में कैद हैं। 

आरके शर्मा के खिलाफ तो सीबीआई ने जांच भी पूरी कर ली लेकिन केन्द्र से अनुमति नहीं मिलने के कारण मामला आगे नहीं बढ़ पाया। आईएएस मनोज कुमार सिंह भी सीबीआई जांच में फंसे हैं। एक भ्रष्ट आईएएस अधिकारी अपने विदेशी महंगे चश्मों और वाइन के शौक के कारण आईएएस बिरादरी में काफी चर्चा में बने रहते थे। किसी ने बच्चे को विदेश में पढ़वाया तो किसी ने करोड़ों के प्लाट लिए। पूर्व वनाधिकारी देशराज बंसल तो सपा सरकार में ऐसे फंसे की जांच में उनके घर के बर्तन तक गिन लिए गये। उनके घर के कुत्तों की खुराक विजिलेंस ने आंकी तो पांच सदस्यों के परिवार का पूरा खर्च भी कम पड़ गया। बंसल अब गोमती नगर में करोड़ों की कीमत से बना इंस्टीट्यूट चला रहे हैं। मुख्य वन संरक्षक राम लखन सिंह ने हुक्मरानों के हुक्म पर मुहर नहीं लगाई तो उन पर नजरें टेढ़ी कर दी गईं। वे वर्षों अदालती लड़ाई लड़े और तब जाकर जीते।

जांच शुरू और फिर बंद होने के दर्जनों किस्से हैं। लेकिन अंजाम तक कोई जांच नहीं पहुंची। एनएचआरएम घोटाले में प्रमुख सचिव स्तर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जल्द ही सीबीआई के शिकंजे में फंसने वाले हैं। उनके विरुद्ध जांच का काम तेजी से चल रहा है और कई सबूत सीबीआई ने एकत्र कर लिए हैं।

बहरहाल, बिहार राज्य ने एक मिसाल कायम करते हुए अनैतिक रूप से सम्पत्ति अर्जित करने वाले वरिश्ठ आईएएस अधिकारी शिव शंकर वर्मा के रूकनपुरा स्थित बंगले को जब्त करके नई दिशा दिखाई है। आईएएस चार वर्ष से निलम्बित चल रहे थे। बिहार सरकार ने वर्मा जी की सम्पत्ति को सरकारी सम्पत्ति मानकर इसमें एक स्कूल खुलवा दिया है। गौरतलब है कि बिहार सरकार ने भ्रष्ट तरीके से एकत्रित की गयी सम्पत्ति को जब्त करने का कानून ‘बिहार विशेष न्यायालय विधेयक 2009’ बनाया है, जबकि यह कार्रवाई भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी की जा सकती है। ज्ञात रहे कि इसके पूर्व जब भी भ्रष्टाचार की गंगा की बात की जाती थी तो सबसे पहला नाम बिहार का आता रहा था लेकिन आज यह अच्छी बात है कि भ्रष्टाचार मिटाने का उदाहरण भी बिहार ने ही पेश किया। इसे सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का नतीजा ही कहा जायेगा जो वह ऐसी पहल करने में कामयाब रही। बिहार के बाद अन्य राज्य सरकारों पर भी भ्रष्टाचार से निपटने का ऐसा दबाव होगा।

बिहार के आईएएस अधिकारी वर्मा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नगराम थाना क्षेत्र के गांव गरहा के मूल निवासी हैं। आज भी उनके पिता यहां रहते हैं। वर्मा के खिलाफ स्पेशल विजिलेन्स यूनिट ने आय से अधिक सम्पत्ति का मुकदमा दर्ज कर जांच की थी। जांच में लगाये गये आरोप सही पाये गये। छह जुलाई 07 को एजेन्सी ने उनके ठिकानों पर छापे मारे थे, उनके लॉकर में ही नौ किलो सोना मिला था। निगरानी विशेष अदालत से आरोप सिद्ध होने के बाद हाई कोर्ट में राहत के लिए याचिका दायर की गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 11 मई 2011 को निगरानी के विशेष न्यायाधीश आरसी मिश्र ने राज्य सरकार के बिहार विशेष न्यायालय अधिनियम 2009 के एक्ट-13 ई के तहत सम्पत्ति जब्ती का फैसला सुनाया था, जिस पर 19 अगस्त 11 को पटना हाई कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की शुरुआत है जो जारी जंग का सार्थक चरण है। उन्होंने कहा कि हमने ऐसी व्यवस्था की है कि कोई सपने में भी गड़बड़ी करने की न सोचे। कोई गलत तरीके से सम्पत्ति को अर्जित कर उसे छिपा नहीं सकता है। ऐसी सम्पत्तियों को जब्त कर हम स्कूल खोलेंगे। अभी ढेर सारे लोग पाइपलाइन में हैं।

करोड़ों रुपये की सम्पत्ति जुटाने वाले बिहार कैडर के अधिकारी शिवशंकर वर्मा के पिता रामपाल शंकर बेटे का बंगला सील होने से बेचैन जरूर हैं लेकिन बेटे ने तरक्की के बाद परिवार से जिस तरह से दूरियां बना ली थीं उससे वे खासे दुःखी भी हैं। उनके चेहरे से शर्मिन्दगी और बातों से पीड़ा साफ झलकती है। वे कहते हैं कि परिवार की मदद ना के बराबर करने वाले बेटे शिव शंकर को बिहार में मकान बनवाने के दौरान बीस वर्ष पहले मैंने भी गल्ला बेचकर पच्चीस हजार रुपये दिये थे। लखनऊ के नगराम में पुराने व जर्जर मकान में रहने वाले रामपाल की मुख्य आजीविका आज भी खेती-किसानी ही है। जहां वे अपने परिवार के साथ रहते हैं। वर्ष 2007 में सीबीआई ने उनके घर आकर सम्पत्ति की छानबीन भी की थी लेकिन उसे यहां पड़ताल में कुछ मिला नहीं।

बेहद साधारण परिवार में जन्में आईएएस अधिकारी वर्मा के पिता आज भी उसी सादगी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बेटे के बंगले की जब्ती की जानकारी उन्हें गांव वालों से ही मिली। पिता रामपाल बताते हैं कि पांच माह पहले शिव शंकर यहां आए थे और कुछ घंटों के बाद ही लौट गये थे। एक बार शिव शंकर ने उन्हें व उनके पिता को हवाई यात्रा भी कराई है। कुछ वर्ष पूर्व तक नगराम में रहने वाले लोग जहां इस बात से खुश थे कि उनके गांव के गरीब परिवार का एक लाल बिहार में ऊंची कुर्सी पर बैठा है, वहीं आज उसके अवैध तरीकों से मालामाल होने की बात सामने आने से वह शर्मिन्दगी भी महसूस कर रहे हैं।

साभार: प्रभासाक्षी न्यूज पोर्टल

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