नन्ही सी गुड़िया की कहानी

नन्ही सी गुड़िया सुनाए, आज अपनी ये कहानी

भर आया उसका गला और आंख से बहता पानी।


न बधाई, न मिठाई और न बजी है थालियां

पैदा होने पर मिली उसको फख्त गालियां

क्यो दुखी है लोग सारे, बात ये उसने ना जानी।


घुटनो-घुटनो चलना सीखा, यूंही मै पलने लगी

दिन महिने साल बीते, उम्र भी बढ़ने लगी

मां-बाप की चिन्ता बढ़ी, होने लगी मै जब सयानी।


खेल छूटा, पढ़ना छूटा, छुटी सब सहेलियां

क्या हंसी, क्या सोखियां, है भूली सब अठखेलियां

बालपन बीता दुखों मे, रोते बीतेगी जवानी।


मुझसे ना पूछा किसी ने, क्या है मेरी ख्वाहिशे

बिकने का सामां बनी, होने लगी नुमाईशें

बोलियां लगने लगी, अरमानो पे फिर गया पानी।


वो भी दिन आया, के जब बाजे बजे, मण्डम सजा

शादी का जोड़ा मुझे एक बोझ सा लगने लगा

कम उम्र मे जिम्मेवारी है मुझको निभानी।


हर पराये जब मै आयी, साल भी बीता न था

कच्ची उम्र मे गर्भ कच्चा पेट पलने लगा

डरती हूं कैसे टिके कच्चे घड़े मे अब ये पानी।


मां बनी मै, गोद मे आई मेरे नन्ही परी

खुश थी लेकिन साथ ही थी मन ही मन मै डरी

मेरे संग बीती जो, न दोहराई जाये फिर कहानी।


सदियो से जकड़े जिनमे, अब उन बेड़ियो को तोड़ दो

बेटियो से भेदभाव करना, अब तो छोड़ दो

बेटी भी है शान कुल की, सोच सब मे है लानी।

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