देश का भविष्य (लघुकथा)

शाम का मौसम था सूर्य छिपने की तैयारी कर रहा था और रात अपना सम्राज्य फैलाने को इंतजार कर रही थी लेकिन सूर्य डूबने को राजी नही था। हल्की हल्की ठंडी सी हवा भी रात के आने का इन्तजार कर रही थी। 

हम इस हंसीन मौसम का लुत्फ उठाते हुए कार्यालय से घर जा रहे थे। रास्ते मे देखा एक दो-तीन वर्ष का छोटा बालक जिसके कपड़ो के नाम पर एक कमीज और हाफ पैन्ट पहन रखी थी। जिसके कन्धे पर एक बोरी लटकी थी, एक हाथ मे हुक वाली छड़ी और कुड़े के ढ़ेर से कुछ चुगता हुआ अपनी धुन मे गाना गाता हुआ मस्त था। गाने के बोल थे ‘शीला की जवानी..............’।

हम सोच रहे थे शायद ये वही देश का भविष्य है जिनके लिये सरकार अनेको प्रस्ताव व योजनाएं पास करती है, शायद इन तक पहुचते-2 खत्म हो जाती है।


मैंने इस लघुकथा को किसी पत्रिका में पढ़ा था, मुझे अच्छी लगी इसलिए पाठकों के लिए शेयर कर रहा हूँ।

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